आमेर का कछवाह वंश- Kachvaah Rajvansh Rajasthan History

आमेर का कछवाह वंश- Kachvaah Rajvansh Rajasthan Rajput Kaal Rajasthan History Notes PDF for the competitive exams in Rajasthan For RPSC, RAS, Teacher 1st Grade, Teacher 2nd Grade, REET, RSMSSB, Informatics assistant, LDC Bharti, High court bharti, Rajasthan Police Sub inspector, raj. police Constable आदि परीक्षाओं के लिए अति महत्वपुर्ण साबित होंगे. जयपुर, आमेर पर कछवाह राजवंश ने शाशन किया था इसकी जानकारी पढ़िए इस पोस्ट में.

कछवाह राजवंश का संस्थापक कोन था ? कछवाह राजवंश का सबसे प्रतापी शाशक कोन था?

aamer ka kachvaah rajvansh
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संस्थापक

संस्थापक – धौलाराय (दूल्हेराय तेजकरण)
राजधानी -दौसा

कोकिलदेव (1207 ई.)

राजधानी – आमेर

कोकिल देव के पुत्रों ने राजपूतों की नरवर (नरूका) ,शेखा (शेखावत) शेखावाटी शाखा की स्थापना की.

( Kachvaah Vansh Rajasthan/ आमेर का कछवाह वंश राजस्थान ) राजस्थान के पूर्वी भाग में जहां ढूढ नदी बहती थी उस क्षेत्र को ढूढाड़ के नाम से जाना जाता है। यहीं पर 1137 ई. में दुल्हाराय ने कछवाह वंश की स्थापना की। 1612 ई. में आमेर लेख मे इस वंश को रधुवंश तिलक कहा गया है। 1170 ई. में मीणो से एक युद्ध में दुल्हाराय मारा गया तब इसका पुत्र कोकिल देव अगला शासक बना। 1207 ई. में कोकिल देव ने मीणों से आमेर छीन लिया और उसे अपनी राजधानी बनाया जो अगले 520 वर्षो तक कुछवाह वंश की राजधानी रही। Kachvaah Rajvansh Rajathan in hindi notes.

1527 ई. के खानवा युद्ध में पृथ्वीराज कछवाहा ने बाबर के विरूद्ध राणा सांगा का साथ दिया। अकबर के समकालीन कछवाह वंश का शासक भारमल था।

भारमल (1548- 1574 ई.)

जनवरी 1562 ई. मे भारमल अकबर से मिला और अकबर की अधीनता स्वीकार की। अकबर ने इस समय सुलहकुल की नीति अपनाई। इस नीति के तहत् राजपूतों के साथ मित्रता स्थापित कर उन्हें अधीन करना व उनके प्रतिरोध करने पर उन्हे समाप्त कर देना था। भारमल ने 6 जनवरी 1562 को अपनी पुत्री हरखाबाई का विवाह सांभर में अकबर के साथ कर दिया। हरखा बाई ने सलीम (जहांगीर) को जन्म दिया। सलीम ने हरखाबाई को मरियम-उज्जयमानी की उपाधी प्रदान की। मूगलों से वैवाहिक संबंध स्थापित करने वाला प्रथम राजपूत शासक था। भारमल के पश्चात् उसके पुत्र भगवानदास व पौत्र मानसिं ने मूगलों की सेवा की। अकबर ने भारमल को अमीर उल उमारा की उपाधि पदान की भगवानदास को 5000 का मनसब (पद) प्रदान किया।(Kachvaah Vansh Rajasthan/ आमेर का कछवाह वंश राजस्थान)

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मानसिंह (1589-1614 ई.)

जन्म- 6 दिसम्बर 1550 मूगलों से सहयोग की नीति
मृत्यु – 6 जुलाई 1614

अकबर ने फर्जन्द नाम दिया इलचपुर में अकबर के नवरतनों में से एक था। अकबर के समय 7000 का मनसब मिला 18 जून 1576 को हल्दीघाटी युद्ध में मुगलों का सेनापति था। बंगाल की सूबेदारी के समय केदारराय से शीलादेवी की मूर्ति प्राप्त की आमेर क्षेत्र में
स्थापित कर श्शीलामाता मंदिर का निर्माण करवाया। आमेर में जमवारामगढ़ दुर्ग की स्थापना की। इसके पुत्र जगतसिंह की मृत्यु होने पर मानसिंह की पत्नी कनकावती ने आमेर में जगतशिरामणि मंदिर का निर्माण करवाया। इस मंदिर में वही कृष्ण की मूर्ति है। जिसकी मीरा बाई पूजा करती थी। मानसिंह की बहन मानबाई का विवाह जहांगीर के साथ हुआ जिसने खुसरों को जन्म दिया।

खुसरो व जहांगीर के मध्य विवाद व जहांगीर के अल्यधिक मदिरा पान के कारण मानबाई ने आत्महत्या कर ली। मानसिंह का दरबारी
कवि – हाया बारहठ मानसिंह के प्रसिद्ध साहित्यकार पुण्डरिक बिट्ठल ने – रागमंजरी रागचन्द्रोदय, नर्तन निर्णय, चूनी प्रकाश की रचना की। (Kachvaah Vansh Rajasthan/ आमेर का कछवाह वंश राजस्थान)

  • मुरारीदास – मानप्रकाश
  • जगन्नाथ – मानसिंह कीर्ति मुक्तावली
  • दलपत राज- पत्र प्रशस्ति व पवन पश्चिम
  • बिहार में मानुपर नगर व बंगाल में अकबर नगर की स्थापना।
  • मानसिंह का अकबर से परिचय 1562 ई. में हुआ। 1562-1614 तक अकबर की सेवा मे रहा। अकबर नें मानसिंह को जून 1573 को महाराणा प्रताप के पास भेजा।
  • 1585 में मानसिंह काबुल का सुबेदार बना।
  • 1587 में बिहार का सुबेदार

मिर्जा राजा जयसिंह -(1621-1666 ई.)

जहांगीर, शाहजहाँ औरंगजेब इन तीनों मुगल बादशाहों की सेवा की। (Kachvaah Vansh Rajasthan/ आमेर का कछवाह वंश राजस्थान)
मानसिंह के पश्चात् कुछ समय के लिए उनका भाई भावसिंह शासक बना। 1621 ई. में उसकी मृत्यु हो गई। तब मानसिंह प्रथम का पुत्र जयसिंह प्रथम आमेर की गद्दी पर बैठा। वह जब 11 वर्ष का था उसने तीन मुगल शासको की सेवा की। शाहजहां ने जयसिंह को मिर्जा राजा की उपाधि प्रदान की 1658 ई. में शाहजहाँ के चारों पुत्रों में उत्तराधिकार का संघर्ष हुआ। जयसिंह ने औरंगजेब का साथ दिया।

1664 ई. में जयसिंह को शिवाजी के विरूद्ध भेजा। 1665 ई. में जयसिंह ने शिवाजी को पराजित कर पुरन्दर की संधि की। इस संधि में शिवाजी को अपने 35 में से 23 दुर्ग मुगलों को सौपने पडे़। 1666 ई. में औरंगजेब के कहने पर जयसिंह प्रथम को उसके पुत्र रामसिंह प्रथम ने जहर दे दिया जिससे बुरहानपुर नामक स्थान पर जयसिंह की मृत्यु हो गई।

  • आमेर का पितृहन्ता- रामसिंह प्रथम
  • बिहारी लाल- बिहारी सतसई (713 दोहो का संकलन)
  • राम कवि – जयसिंह चरित्र
  • आमेर में जयगढ़ दुर्ग का निर्माण करवाया। ( इस दुर्ग में जयबाण तोप- एशिया की सबसे बडी तोप है )
  • उपनाम-चिल्ह का टीला

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जयसिंह द्वितीय- स्थापत्य कला (1700- 1743 ई. )

बचपन का नाम – चिमना जी
औरंगजेब ने सवाई की उपाधि प्रदान की 1727 में जयपुर की स्थापना।
जयपुर का वास्तुकार – विद्याधर भट्टाचार्य 1857 रामसिंह द्वितीय
गुलाबी रंग में जयपुर रंगवाया।
जयपुर- प्रीस अलर्बट के आगमन पर।
पांच वैद्यशालाएं स्थापित की जिन्हें जंतर -मंतर के नाम से जाना जाता है।

  1. दिल्ली -1724
  2. जयपुर-1728 (सबसे बडी) 2010 में यूनेस्को ने विश्व विरासत सूची मे रखा गया।
  3. मथुरा
  4. उज्जैन
  5. बनारस (वारणसी)
  • सवाई जयसिंह – जयसिंह कारिका, फारसी अनुवाद- जिज्जे मुहम्मदशाही।
  • आधुनिक समय में सवाई जयसिंह ने प्राचीन समय के अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन किया। ( Kachvaah Vansh Rajasthan/ आमेर का कछवाह वंश राजस्थान)
  • भारतीय इतिहास में सर्वाधिक अश्वमेघ यज्ञ कदबवंश के शासक मयूर शर्मन ने किया। 1743 ई. में सवाई जयसिंह की मृत्यु ।

सवाई ईश्वरी सिंह (1743-1750 ई.)

देवारी समझोते के अनुसार चंद्रकुंवरी से उत्पन्न पुत्र को ही आमेर का शासक बनाया जाना था किन्तु सूरज कुवंरी से ईश्वरी सिंह का जन्म पहले हुआ। चंद्रकुवंरी ने माधोसिंह को जन्म दिया। अतः बडा हाने के नाते 1743 में ईश्वरी सिंह शासक बना किन्तु माधोसिंह ने अपना दावा प्रस्तुत किया। परिणाम स्वरूप दोनो के मध्य 1743 में राजमहल का युद्ध हुआ। माधोंसिंधों सिंह के साथ मराठे थे। Kachvaah Vansh Rajasthan ईश्वरी सिंह की विजय हुई। ईश्वरी सिंह ने जयपुर में ईसरलाट/सरगासूली का निर्माण करवाया। यह एक विजय स्तम्भ के रूप में है। यहां अपराधियों को मृत्यु दण्ड दिया जाता था।
यही पर चित्रकार साहबराम द्वारा बनाया गया ईश्वरी सिंह का आदमकद चित्र है। 1750 ई. में माधोंसिंधों सिंह से परेशान होकर ईश्वरी सिंह ने आत्महत्या कर ली।

माधोसिंह प्रथम (1750 – 1768 ई. )

  • माधोसिंह मराठों की सहायता से 7 जनवरी 1751 ईस्वी को जयपुर का शासक बना ।
  • कांकोड़ का युद्ध (1759) :- मुगल बादशा ह अहमदश ह ने 1754 में रणथम्भौर माधोसिं ह को दे दिया परन्तु मराठे भी रणथम्भौ र पर अधिकार करना चाहते थे। परिणामस्वरूप मल्हार राव होल्कर की सेना और माधोसिंह के मध्य 1759 में कांकोड़। (टोंक) का युद्ध जिसमें मराठा सेना पराजित हुई।
  • भटवाड़ा का युद्ध (1761) :- माधोसिं ह ने रणथम्भौर के अंतर्गत आने वा ले पुरा ने क्षेत्र पर करना पर प्रारंभ कर दिया इससे नाराज कोटा के सत्रसाल ने झाला जालिमसिंह को भेजा जालिम सिंह ने 2 दिसंबर 1761 को भटवाड़ा के युद्ध में माधव सिंह की सेना को पराजित किया (Kachwaha Rajput History India in hindi)

सवाई प्रतापसिंह (1778 – 1803 ई.)

तुंगा का युद्ध (जुलाई 1787) :- महादजी सिंधिया व प्रतापसिं ह के मध्य हुआ इसमें महादजी सिंधिया की हार हुई एवं सिं धि या ने जा ते समय कहा था कि मैं जी ता रहा तो जयपुर को मि ट्टी में मि ला दूंगा Kachvaah Rajvansh Rajasthan. आमेर का कछवाह वंश ।

पाटन का युद्ध (जून 1790) :-

  • इस युद्ध में प्रतापसिं ह पराजि त हुआ। पाटन के युद्ध में मराठा सेना का नेतृत्व डी -बो ई नामक फ्रांसी सी सेनापति ने किया था ।

मालपुरा का युद्ध (1800) :-

  • इस युद्ध में मराठों ने सवाई प्रतापसिं ह और जोधपुर के भीमसिं ह की सेनाओं को पराजित किया ।

हवा महल Hawa Mahal- Jaipur :-

शिल्पी –लालचंद (इसमें 953 खिड़कियां व 152 झरोखे है। यह पाँच मंजिला है –

  1. शरद प्रताप मंदिर
  2. रतन मंदिर
  3. विचित्र मंदिर
  4. प्रकाश मंदिर
  5. हवा मंदिर
  • सवाई प्रतापसिंह ‘ब्रजनिधि ’ के उपनाम से कविताएं लिखते थे। इनकी कविताओं का संकलन ‘ब्रजनिधि ग्रंथावली ’ कहलाता है।
  • गंधर्वबाईसी / गुणीजनखाना :- प्रतापसिंह के दरबार में 22 विद्वानों का समूह था । प्रतापसिंह के संगीत गुरु चांद खाँ थे इन्होंने स्वर सागर ग्रंथ लिखा ।
  • प्रतापसिंह के समय 1778 जॉर्ज थॉमस ने जयपुर पर आक्रमण कि या था ।

सवाई जगतसिंह (1803 – 1818 ई.)

  • रसकपूर नामक वेश्या के प्रति विशेष लगाव के कारण जगत सिंह को जयपुर का ‘बदनाम शासक’ माना जाता है।
  • कृष्णा कुमारी विवाद :- मेवाड़ के भीमसिंह की पुत्री कृष्णा कुमारी का रिश्ता जोधपुर के भीमसिं ह से हुआ। भीमसिंह की मृत्यु हो गई।
  • कृष्णा कुमारी का रिश्ता जयपुर के जगतसिंह द्वितीय से कर दिया गया इस कारण जगतसिंह द्वितीय व जोधपुर के महाराजा मानसिं के मध्य 1807 में परबतसर नागौर में गिंगोली का युद्ध हुआ।
  • 5 अप्रैल 1818 को अंग्रेजों से अधीनस्थ संधि की । (Kachvaah Rajvansh Notes In Hindi PDF)


रामसिंह द्वितीय (1835 – 1880 ई. )


सवाई रामसिंह द्वितीय अल्पावस्था में शासक बने, प्रशासन संचालन के लिए रीजेंसी का गठन कर मेजर रॉस को उसका प्रथम अध्यक्ष बनाया । जनवरी 1844 में मेजर लूडलो को रीजेंसी काउंसिल का अध्यक्ष बनाया गया । 1851 में रीजेंसी काउंसिल का शासन समाप्त कर दि या गया ।

गुलाबी नगरी :-

  • 1868 में एडवर्ड पंचम के आगमन पर रा मसिं ह ने जयपुर को गेरुआ / गुलाबी रंग से रंगवाया था । जयपुर के लिए सर्वप्रथम पिंक सिटी शब्द का प्रयोग स्टैनले रोड ने अपनी पुस्तक “द रॉयल टाउन ऑफ़ इंडिया ” में किया था ।

अल्बर्ट हॉल :-

  • 1876 में प्रिंस अल्बर्ट के आगमन पर हिंदू, स्लामिक, ईसाई तीनों शैलियों में अल्बर्ट हॉल बनवाया । इसका वास्तुकार स्टीवन जैकब था ।
  • जयपुर में ताजिये के साथ रामसिं ह का ताजिया निकलता है।
  • रामसिंह के समय स्वामी दयनंद सरस्वती तीन बा र जयपुर आए थे।
  • रामसिंह की भटियाणी रानी ने रामनिवास बाग बनवाया । रामसिं ह ने रामगढ़ बांध बनवाया ।(Kachwaha
  • Rajput History In Hindi/ Rajput Kachwaha Dynasty/Kacchwaha Rajvansh/आमेर का कछवाहा वंश)

माधोसिंह द्वितीय (1880 – 1922 ई. )

  • अल्बर्ट हॉल का निर्माण पूर्ण करवाया ।
  • नाहरगढ़ में एक जैसे नौ महल बनवाए।
  • मुबारक महल बनवाया । यह महल हिं दू, इस्लामिक , ईसाई तीनों शैलियों में बना है।
  • लंदन यात्रा :- एडवर्ड सप्तम के राज्यारोहण के में इंग्लैंड गया ।
  • 1911 में महा रानी मेरी जयपुर आई थी । मेरी के नाम पर झोटवाड़ा से खातीपुरा के बीच क्वींस रोड बनवाई थी ।

मानसिंह द्वितीय (1922 – 1949 ई.)

आजादी के समय जयपुर का शासक।
व्रहद रा जस्था न संघ का रा ज्यप्रमुख बना या गया ।
राजपूताना रेजिरेजिडेंसी का मुख्य सेनापति बना या ।
इसका विवाह कूच बिहार (पश्चिम बंगाल) की राजकुमारी गायत्री देवी से हुआ। गायत्री देवी लोकसभा में जाने वाली राजस्थान की पहली महिला ।
मानसिंह द्वितीय की मृत्यु लंदन में 1970 में पोलो खेलते समय हुई।
सवाई मानसिंह द्वितीय जयपुर के कछवाहा वंश के अंतिम शासक थे।
सवाई मानसिंह द्वितीय के प्रधानमंत्री मिर्ज़ा इस्माइल को आधुनिक जयपुर का निर्माता माना जाता है।
1942 ईस्वी में मिर्ज़ा इस्माइल और हीरालाल शास्त्री के मध्य एक समझौता हुआ जिसे ‘जेंटलमेन एग्रीमेंट’ कहा जाता है। इस अग्रीमेंट के तहत रियासत भारत छोडो आन्दोलन में भाग नहीं लेगी. Kachvaah Rajvansh Rajasthan आमेर का कछवाह वंश की सम्पूर्ण जानकारी.

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