When the rajasthan history incident done. how do we know that the particular incident done in the Rajasthan history. source of rajasthan History राजस्थान का इतिहास जानने के स्त्रोत क्या है ? यह पता करने के लिए आज इस लेख में हम आपको सम्पूर्ण जानकारी देने की कोशिश करेंगे साथ ह बताएँगे what is silalekh? what is guhalekh? what is abhilekh? rajasthan ke pramukh sikke. rajasthan ki rajprashasti.
दोस्तों इस पोस्ट में हम आपको बताएँगे की अभिलेख, शिलालेख और गुहालेख क्या होता है और इनमे क्या अंतर होता है. साथ ही दोस्तों आपको कोई pdf डाउनलोड करने की जरुरत नही आप कभी भी पढ़ सकते है इस वेबसाइट को आप बुकमार्क सेव कर लेंवे.
Source of Rajasthan History राजस्थान इतिहास के स्त्रोत
इतिहास का शाब्दिक अर्थ ऐसा निश्चित रूप से हुआ है। इतिहास के जनक यूनान के हेरोडोटस को माना जाता हैं लगभग 2500 वर्ष पूर्व उन्होने ” हिस्टोरिका” नामक ग्रन्थ की रचना की । इस ग्रन्थ में उन्होने भारत का उल्लेख भी किया हैं।
भारतीय इतिहास के जनक महाभारत के लेखक वेद व्यास माने जाते है। महाभारत का प्राचीन नाम “जय सहिता” था। राजस्थान इतिहास के जनक कर्नल जेम्सहाडॅ कहे जाते है। वे 1818 से 1821 के मध्य मेवाड़ (उदयपुर) प्राप्त के पोलिटिकल एजेन्ट थे उन्होने घोडे पर धूम-धूम कर राजस्थान के इतिहास को लिखा।
अतः कर्नल टाॅड को “घोडे वाले बाबा” कहा जाता है। इन्होने “एनाल्स एण्ड एंटीक्वीटीज ऑफ़ राजस्थान” नामक पुस्तकालय का लन्दन में 1829 में प्रकाशन करवाया।
गोरी शंकर हिराचन्द ओझा ( GH OJHA) ने इसका सर्वप्रथम हिन्दी में अनुवाद करवाया। इस पुस्तक का दूसरा नाम “सैटर्ल एण्ड वेस्टर्न राजपूत स्टेट ऑफ़ इंडिया” है। कर्नल जेम्स टाॅड की एक अन्य पुस्तक “ट्रेवल्स इन वेस्टर्न इण्डिया” का इसकी मृत्यु के पश्चात 1837 में इनकी पत्नी ने प्रकाशन करवाया।
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राजस्थान हिस्ट्री जानने के प्रमुख स्त्रोत Important Source to know the rajasthan
S. No. | पुरातात्विक स्त्रोत | पुरालेखागारिय स्त्रोंत | साहित्यिक स्त्रोत |
1. | सिक्के | हकीकत बही | राजस्थानी साहित्य |
2. | शिलालेख | कमठाना बह | संस्कृत साहित्य |
3. | ताम्रपत्र | हुकूमत बही | फारसी साहित्य |
4. | खरीता बही |
1. सिक्के (Coins)-
(Coins) सिक्को के अध्ययन न्यूमिसमेटिक्स कहा जाता है। भारतीय इतिहास सिंधुघाटी सभ्यता और वैदिक सभ्यता में सिक्को का व्यापार
वस्तुविनियम पर आधारित था। भारत में सर्वप्रथम सिक्को का प्रचलन 2500 वर्ष पूर्व हुआ ये मुद्राऐं खुदाई के दोरान खण्डित अवस्था में
प्राप्त हुई है। अतः इन्हें आहत मुद्राएं कहा जाता है। इन पर विशेष चिन्ह बने हुए है। अतः इन्हें पंचमार्क सिक्के भी कहते है। ये मुद्राऐं
वर्गाकार, आयाताकार व वृत्ताकार रूप में है। कोटिल्य के अर्थशास्त्र में इन्हें पण/कार्षापण की संज्ञा दी गई ये अधिकांशतः चांदी धातु के थे।
राजस्थान के चैहान वंश ने राज्य में सर्वप्रथम अपनी मुद्राऐं जारी की। उनमें “द्रम्म” और “विशोपक” तांबे के “रूपक” चांदी के “दिनार”
सोने का सिक्का था। मध्य युग में अकबर ने राजस्थान में “सिक्का ए एलची” जारी किया। अकबर के आमेर से अच्छे संबंध थें अतः वहां सर्वप्रथम टकसाल खोलने की अनुमती प्रदान की गई।
राजस्थान की रियासतों के प्रमुख सिक्के
क्र. सं. | रियासत | वंश | सिक्के |
1. | मेवाड | सिसोदिया | चांदोदी (सोने के ) |
2. | आमेर | कछवाह | झाडशाही |
3. | मारवाड (गजसिंह राठौड) | राठोड | गदिया/ फदिया |
4. | मारवाड़ | राठोड | विजयशाही |
राजस्थान के प्रमुख शिलालेख
शिलालेखों का अध्ययन एपीग्राफी कहलाता है। भारत में सर्वप्रथम अशोक मौर्य ने शिलालेख जारी करवाये।
अशोक का भाब्रू शिलालेख –
source of rajasthan History, culture and geography. जयपुर के निकट बैराठ से प्राप्त इस लेख में अशोक द्वारा बौद्ध धर्म अपनाने की पुष्टी होती है। वर्तमान में यह लेख कोलकत्ता म्युजियम में है। अशोक का यह लेख पाली भाषा व ब्राहणी लीपी में है। कनिघम इस शिलालेख को अध्ययन के लिए कोलकत्ता ले गये थे।
घोसुण्डी का लेख –
चित्तौडगढ़ जिले से प्राप्त प्रथम सदी का यह लेख संस्कृत में है। इसमे भगवान विष्णु की उपासना की जानकारी प्राप्त होती है।
चित्तौड़ का शिलालेख –
971 ई. का चित्तौड़ से प्राप्त इस शिलालेख से ज्ञात होता है कि उस समय मेवाड़ क्षेत्र में महिलाओं का मंदिर में प्रवेश वर्जित था।
बिजोलिया का शिलालेख –
रचयिता – गुणभद्र भाषा-संस्कृत 1170 ई. का यह शिलालेख भीलवाडा से जिला के पठारी भाग से प्राप्त इस लेख से शाकम्भरी के चैहान वंश के बारे मे प्राप्त होता है। इस लेख के अनुसार चैहानों की उत्पत्ति वत्स गोत्रिय बा्रहम बा् णों से बताई गयी है।
चीरवे का शिलालेख –
भाषा संस्कुत 1273 ई. (13 वीं सदी) मेवाड़ (उदयपुर) से प्राप्त इस शिलालेख से गुहिल वंश की जानकारी प्राप्त होती है।
श्रृंगीऋषी का शिलालेख –
1428 ई. मेवाड़ (15 वी. सदी) क्षेत्र से प्राप्त इस लेख से गुहिल वंश की जानकारी के साथ-साथ राजस्थान की प्राचीन जनजाती भील जनजाती के सामाजिक जीवन पर भी प्रकाश पड़ता है।
आमेर का शिलालेख – (1612 ई.)
मानसिंह प्रथम के इस लेख से निम्न लिखित जानकारी प्राप्त होती है। कुशवाह वंश की जानकारी मानसिंह द्वारा आमेर क्षेत्र जमवारामगढ़ दुर्ग बनवाये जाने का उल्लेख इस लेख में कुशवाहा वंश को रघुवंश तिलक कहा गया है। कुशवाह वंश की उत्पत्ति श्रीराम के बडे़ पुत्र कुश से मानी
जाती है।
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राजप्रशस्ति –
1676 ई. मेवाड़ के राणा राजसिंह ने राजसमंद झील बनवाई। जिसका उत्तरी भाग नौचैकी कहलाता है। यही पर पच्चीस काले संगमरमर की शिलाओं पर मेवाड का सम्पूर्ण इतिहास उत्कीर्ण है। जिसे राजप्रशस्ति कहा जाता है। यह संसार की सबसे बडी प्रशस्ति/लेख है। इसके सूत्रधार रणछोड़ भट्ट तैलंग है। जिन्हे अमरकाव्य वंशावली की रचना की।
फारसी शिलालेख-
ढाई दिन का झोपडा का लेख – अजमेर में कुतुबुद्दीन ऐबक ने ढाई दिन का झोपडा बनवाया । इस पर फारसी भाषा में इसके निर्माताओं
के नाम लिखे है। यह भारत का सर्वाधिक प्राचीन फारसी लेख है।
धाई-बी-पीर की दरगााह का लेख- 1303 ई. चित्तौड़ से प्राप्त फारसी लेख से ज्ञात होता है कि 1303 ई. में अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड पर अधिकार कर उसका नाम अपने बडें पुत्र खिज्र खां के नाम पर खिज्राबाद कर दिया। शाहबाद का लेख (बांरा) -1679 (17 वीं सदी) बांरा जिले से प्राप्त इस लेख से ज्ञात होता है कि मुगल शासक औरंगजेब ने इस ई. में गैर मुस्लिम जनता पर जजिया कर लगा दिया औंरगऔं जेब की कर नीति की जानकारी भी प्राप्त होती है।
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ताम्रपत्र
(खेरोदा का ताम्रपत्र) 15 वीं सदी के इस ताम्रपत्र से ही राणा कुम्भा द्वारा किए गए प्रायश्चित का वर्णन है। साथ ही मेवाड़ की धार्मिक स्थित की जानकारी भी प्राप्त होती है।
पुरा लेखागारिय स्त्रोत
- हकीकत बही- राजा की दिनचर्या का उल्लेख
- हुकूमत बही – राजा के आदेशों की नकल
- कमठाना बही – भवन व दुर्ग निर्माण संबंधी जानकारी
- खरीता बही – पत्राचारों का वर्णन
- राज्य अभिलेखागार बीकानेर में उपर्युक्त बहियां सग्रहीत है।
- राष्ट्री य पुरालेख विभाग -दिल्ली
नोट: कमठा लाग (TAX) भी है।
साहित्यिक स्त्रोत
क्र. सं. | राजस्थानी साहित्य | साहित्यकार |
1. | पृथ्वीराजरासो | चन्दबरदाई |
2. | बीसलदेव रांसो | नरपति नाल्ह |
3. | हम्मीर रासो | जोधराज |
4. | हम्मीर रासो | शारगंधर |
5. | संगत रासो | गिरधर आंसिया |
6. | बेलिकृष्ण रूकमणीरी | पृथ्वीराज राठौड़ |
7. | अचलदास खीची री वचनिका | शिवदास गाडण |
8. | कान्हड़ दे प्रबन्ध | पदमनाभ |
9. | पातल और पीथल | कन्हैया लाल सेठिया |
10. | धरती धोरा री | कन्हैया लाल सेठिया |
11. | लीलटास | कन्हैया लाल सेठिया |
12. | रूठीराणी, चेतावणी रा चूंगठिया | केसरीसिंह बारहड |
13. | राजस्थानी कहांवता | -मुरलीधर ब्यास |
14. | राजस्थानी शब्दकोष | -सीताराम लालस |
15. | नैणसी री ख्यात | -मुहणौत नैणसी |
16. | मारवाड रे परगाना री विगत | -मुहणौत नैणसी |
17. | पृथ्वीराज विजय | – जयानक (कश्मीरी) |
18. | हम्मीर महाकाव्य – नयन चन्द्र सूरी | |
19. | ललित विग्रराज | कवि सोमदेव |
20. | एक लिंग महात्मय | कान्ह जी ब्यास |
21. | भाषा भूषण | जसवंत सिंह |
22. | नृत्यरत्नकोष | राणा कुंभा |
23. | वंश भासकर/छंद मयूख | सूर्यमल्ल मिश्रण (bundi) |
24 | कुवलयमाला | उद्योतन सूरी |
25 | हम्मीर मदमर्दन | जयसिंह सूरी |
26 | वाकीया-ए- राजपूताना | मुंशी ज्वाला सहाय |
27 | तारीख -ए-राजस्थान | कालीराम कायस्थ |
28 | तुजुके जहांगीरी | जहांगीर |
29 | अकनामा/आइने अकबरी | अबुल फजल |
30 | हुमायूनामा | गुलबदन बेगम |
31 | तुजुके बाबरी (तुर्की) बाबरनामा | बाबर |
32 | खजाइन-उल-फुतूह | अमीर खुसरों |
33 | मिम्ता-उल-फुतूह | अमीर खुसरो |
34 | चचनामा | अली अहमद |
नोट: प्रिय पाठको लेखक की और से सम्पूर्ण जानकारी ऑथेंटिक सोर्स से ली गयी है हमने सभी जानकारी सही देने का प्रयास किया है फिर भी यदि आपको कोई गलती दिखे तो कृपया हमें मेल या कमेन्ट करें.
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