Kabir ke Dohe in Hindi pdf कबीर दास के दोहे

Kabir ke Dohe in Hindi pdf: नमस्कार पाठ को आज के इस पोस्ट में हम आपको कभी जी के दोहे हिंदी में बताएंगे कि कौन से दोहे कबीर जी के फेमस है वैसे तो कबीर जी बहुत ही लोकप्रिय और उनके दोहे और भी ज्यादा प्रसिद्ध है तथा कबीर जी के दोहे के बारे में आज इस प्रश्न हम आपको बताएंगे और उनकी पीडीएफ भी साझा करेंगे. कबीर के दोहे अर्थ सहित pdf, कबीर के 200 दोहे अर्थ सहित pdf, 1000 कबीर के दोहे, kabir ke dohe arth sahit, kabir ke dohe lyrics, कबीर दास के 200 दोहे, कबीर दास के 10 दोहे, rahim ke dohe.

kabir ke dohe in hindi pdf
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कबीर के दोहे अर्थ सहित pdf

जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान।
मोल करो तलवार का, पड़ी रहन दो म्यान ।1।

अर्थ : कबीरदास जी कहते है किसी व्यक्ति से उसकी जाति नहीं पूछनी चाहिए बल्कि उससे ज्ञान की बात करनी चाहिए | क्योंकि असली मोल तो तलवार का होता है, म्यान का नहीं |

मानुष जन्म दुर्लभ है, मिले न बारम्बार ।
तरवर से पत्ता टूट गिरे, बहुरि न लागे डारि ।2।

अर्थ : कबीरदास जी कहते है मानव जन्म पाना कठिन है | यह शरीर बार-बार नहीं मिलता | जो फल वृक्ष से नीचे गिर पड़ता है वह पुन: उसकी डाल पर नहीं लगता | इसी तरह मानव शरीर छूट जाने पर दोबारा मनुष्य जन्म आसानी से नही मिलता है, और पछताने के अलावा कोई चारा नहीं रह जाता |

क्या मांगुँ कुछ थिर ना रहाई, देखत नैन चला जग जाई।
एक लख पूत सवा लख नाती, उस रावण कै दीवा न बाती।3|

अर्थ : कबीर साहेब कहते है यदि एक मनुष्य अपने एक पुत्र से वंश की बेल को सदा बनाए रखना चाहता है तो यह उसकी भूल है। जैसे लंका के राजा रावण के एक लाख पुत्र थे तथा सवा लाख नाती थे। वर्तमान में उसके कुल (वंश) में कोई घर में दीप जलाने वाला भी नहीं है | सब नष्ट हो गए। इसलिए हे मानव! परमात्मा से तू यह क्या माँगता है जो स्थाई ही नहीं है |

गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पाँय ।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो मिलाय ।4।

अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि अगर हमारे सामने गुरु और भगवान दोनों एक साथ खड़े हों तो आप किसके चरण स्पर्श करेंगे? गुरु ने अपने ज्ञान से ही हमें भगवान से मिलने का रास्ता बताया है इसलिए गुरु की महिमा भगवान से भी ऊपर है और हमें गुरु के चरण स्पर्श करने चाहिए |

ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोये ।
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए ।5।

अर्थ : कबीर दास जी इस दोहे में कह रहे है कि मनुष्य को ऐसी भाषा बोलनी चाहिए जो सुनने वाले के मन को बहुत अच्छी लगे। ऐसी भाषा दूसरे लोगों को तो सुख पहुँचाती ही है, इसके साथ खुद को भी बड़े आनंद का अनुभव होता है |

कबीर दास के 200 दोहे

बड़ा भया तो क्या भया, जैसे पेड़ खजूर ।
पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर ।6

अर्थ : कबीर दास जी कहते है ऐसे बड़े होने का क्या फायदा कि जैसे खजूर का पेड़ न तो किसी को छाया देता है और उसका फल भी बहुत ऊचाई पर होता है | उसी तरह मनुष्य के बड़े होने का क्या फायदा है जब आप किसी का भला नही कर सकते |

पत्थर पूजें हरि मिले तो मैं पूजूँ पहार।
तातें तो चक्की भली, पीस खाये संसार ।7।

अर्थ : कबीर दास जी इस दोहे में मनुष्य को समझाते हुए कहते हैं कि किसी भी देवी-देवता की आप पत्थर की मूर्ति बनाकर उसकी पूजा करते हैं जो कि शास्त्र विरुद्ध साधना है। जो कि हमें कुछ नही दे सकती। इनकी पूजा से अच्छा चक्की की पूजा कर लो जिससे हमें खाने के लिए आटा तो मिलता है।

काल करै सो आज कर, आज करे सो अब।
पल में परलय होयगी, बहुरि करेगा कब ।8।

अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि हमारे पास समय बहुत कम है, जो काम कल करना है उसको आज ही कर डालो, और जो आज करना है उसको अभी कर डालो, क्यूंकि पलभर में प्रलय जो जाएगी फिर आप अपने काम कब करोगे।

दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय ।
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे को होय ।9।

अर्थ : कबीर दास जी इस दोहे के माध्यम से कहते है कि दुःख में हर इंसान ईश्वर को याद करता है लेकिन सुख में सब ईश्वर को भूल जाते हैं। अगर सुख में भी ईश्वर को याद करो तो दुःख कभी आएगा ही नहीं।

नहाये धोये क्या हुआ, जो मन मैल न जाए ।
मीन सदा जल में रहे, धोये बास न जाए ।10।

अर्थ : कबीर दास जी इस दोहे के माध्यम से कहते है कि आप कितना भी नहा धो लीजिए, लेकिन अगर आप का मन साफ़ नहीं है तो ऐसे नहाने का क्या फायदा, जैसे मछली हमेशा पानी में रहती है लेकिन फिर भी वो साफ़ नहीं होती, मछली में तेज बदबू आती है।

Kabir Das ji ke Dohe PDF

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोई।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोई

अर्थ: मैं विश्व को देखते-देखते बुराई की ओर बढ़ गया, लेकिन मुझे कोई बुरा नहीं मिला। जो व्यक्ति अपने अंदर की गहराईयों की खोज करता है, वह देखता है कि कोई भी उससे बुरा नहीं है।

मन ना रंगाए फूलिया, कैसे सब यों दिन रैंग।
जब तेहरी भृंग आपनी, जैसे घट में उपास जगदीश।

अर्थ: मन को फूलों में रंगने नहीं दिया जाना चाहिए, क्योंकि जैसे मधुमक्खी अपने अंदर में ही प्रभु की उपासना करती है, वैसे ही हमें अपने अंदर में ही भगवान का आत्मा अनुभव करना चाहिए।

कबीरा तेरा जीवन की, ज्यों कटे मेरा एक पल।
दुख में सिमटी आंचल, सुख में लेंबे कम्बल।

अर्थ: कबीर कहते हैं कि तेरा जीवन मेरे जीवन से बिलकुल भी अलग नहीं है। जैसे मेरा एक पल कट जाता है, वैसे ही तेरा भी। तुझे दुख में मेरा साथ मिलेगा जैसे सिमटी हुई आंचल मिलता है, और सुख में मेरा साथ मिलेगा जैसे लम्बे कम्बल मिलता है।

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Book NameKabir Ke Dohe In Hindi
AuthorKabir Das
File TypePdf
Pdf Size0.3 MB
Pdf Pages36
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